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करवा चौथ: कैसे होती है? पति की दीर्घायु

जय श्री कृष्णा

 

करवा चौथ हिंदू धर्म का एक प्रमुख और लोकप्रिय पर्व है

जिसे मुख्य रूप से उत्तर भारत में विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए मनाती हैं।

करवा चौथ स्पेशल

यह पर्व हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आता है, जो आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर के महीने में पड़ता है।

इस दिन विवाहित महिलाएं दिन भर का निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चंद्रमा के दर्शन के बाद ही व्रत को तोड़ती हैं।

इस व्रत की खास बात यह है कि इसे प्रेम और त्याग का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि महिलाएं अपने पति की भलाई के लिए कठिन उपवास करती हैं।

 

करवा चौथ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

 

करवा चौथ का महत्व न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक माना जाता है।

धार्मिक रूप से, इस पर्व को भगवान शिव, देवी पार्वती और भगवान गणेश की पूजा के साथ जोड़ा जाता है।http://www.abpnews.com

मान्यता है कि इस दिन देवी पार्वती ने अपने पति भगवान शिव के लिए कठिन तप किया था, और उनकी आराधना से भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया। इसलिए, विवाहित महिलाएं भी इस दिन देवी पार्वती की पूजा करती हैं ताकि उनके पति की आयु लंबी हो और उनका वैवाहिक जीवन सुखमय हो।

सांस्कृतिक रूप से, करवा चौथ महिलाओं के बीच आपसी प्रेम और एकता का पर्व भी है।

इस दिन महिलाएं एकत्रित होकर सामूहिक रूप से पूजा करती हैं और अपने अनुभव साझा करती हैं।

यह पर्व महिलाओं को उनके वैवाहिक जीवन में प्यार, समर्पण और जिम्मेदारी का महत्व समझाता है।

इसके साथ ही यह त्यौहार परिवार और सामाजिक संबंधों को भी मजबूत बनाता है।

 

करवा चौथ का व्रत और उसकी परंपराएं

 

करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से पहले शुरू होता है, जब महिलाएं ‘सरगी’ खाती हैं। सरगी वह भोजन होता है जिसे सास अपनी बहू को व्रत शुरू करने से पहले देती है।

इसमें आमतौर पर फल, मिठाइयाँ, सूखे मेवे और हल्का भोजन होता है, ताकि महिला दिन भर निर्जला व्रत करने के लिए तैयार हो सके।

सरगी को एक प्रकार की आशीर्वाद के रूप में भी देखा जाता है, क्योंकि यह सास-बहू के रिश्ते को भी और मजबूत करता है।

सूर्योदय के बाद महिलाएं अपने व्रत की शुरुआत करती हैं और दिन भर बिना जल ग्रहण किए रहती हैं।

वे दिन के समय पूजा की तैयारी करती हैं और संध्या समय भगवान शिव, पार्वती, और गणेश की पूजा करती हैं। करवा चौथ की पूजा में करवा (मिट्टी का पात्र) का विशेष महत्व होता है,

जो मुख्य रूप से पूजा की थाली में रखा जाता है। इस करवे में जल भरकर भगवान को अर्पित किया जाता है और बाद में इसे चंद्रमा को अर्घ्य के रूप में दिया जाता है।

करवा चौथ के दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं, जो उन्हें एक नवविवाहिता के रूप में शोभित करता है।

वे पारंपरिक परिधान पहनती हैं, जिसमें साड़ी या लहंगा शामिल होता है। साथ ही, हाथों में मेहंदी लगाने की भी प्रथा होती है, जो सौभाग्य और प्रेम का प्रतीक मानी जाती है।

महिलाएं चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर, और अन्य गहने पहनती हैं, जो उनके विवाहित जीवन का प्रतीक होते हैं।

 

चंद्र दर्शन और व्रत का समापन

 

करवा चौथ व्रत का समापन चंद्रमा के दर्शन के साथ होता है। रात के समय, जब चंद्रमा उदय होता है, तो महिलाएं छलनी के माध्यम से पहले चंद्रमा और फिर अपने पति का दर्शन करती हैं। इसके बाद वे चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं और अपने पति के हाथों से जल ग्रहण करती हैं। इस प्रकार उनका व्रत समाप्त होता है। इस प्रक्रिया के पीछे यह मान्यता है कि चंद्रमा को देखने से मन को शांति मिलती है और उसका अर्घ्य देने से पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

 

करवा चौथ की कथा

 

करवा चौथ के पीछे कई धार्मिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक कथा सत्यवान और सावित्री की है। इस कथा के अनुसार, सत्यवान की मृत्यु के बाद सावित्री ने यमराज से अपने पति का जीवन वापस पाने के लिए कठिन तप किया था।

उसकी तपस्या और भक्ति से यमराज प्रसन्न हुए और उन्होंने सत्यवान को जीवनदान दिया। इस प्रकार, करवा चौथ व्रत को सावित्री की भक्ति और नारी शक्ति का प्रतीक माना जाता है।

एक अन्य प्रचलित कथा वीरवती की है। वीरवती एक सुंदर और धर्मपरायण महिला थी,

जिसने करवा चौथ का व्रत अपने पति के लिए रखा था। लेकिन दिन भर भूखे-प्यासे रहने के कारण उसकी तबीयत खराब हो गई। उसके भाइयों ने उसे बहकाने के लिए एक कृत्रिम चंद्रमा दिखाया, और वीरवती ने व्रत तोड़ दिया। इससे उसका पति मर गया।

वीरवती ने अपने पति को पुनर्जीवित करने के लिए कठिन तप किया और अंततः उसके पति को जीवनदान मिला। इस कथा के आधार पर करवा चौथ के व्रत को अटूट विश्वास और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

 

आधुनिक समय में करवा चौथ

 

आज के समय में करवा चौथ न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक उत्सव भी बन गया है।

पहले यह केवल उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में मनाया जाता था, लेकिन अब इसे पूरे भारत और यहां तक कि विदेशों में भी बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने लगा है।

इसके साथ ही, करवा चौथ अब सिर्फ पारंपरिक नियमों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें आधुनिकता का भी समावेश हो गया है।

अब पति भी अपनी पत्नियों के साथ व्रत रखते हैं, जो इस त्यौहार में समानता और एक-दूसरे के प्रति प्रेम और आदर की भावना को दर्शाता है।

इसके साथ ही, करवा चौथ के अवसर पर गिफ्ट देने की भी परंपरा शुरू हो गई है, जिसमें पति अपनी पत्नियों को आभूषण, कपड़े या अन्य उपहार देते हैं।

जानकारी:

करवा चौथ का पर्व नारी शक्ति, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। यह त्यौहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है,

बल्कि इसमें परिवार और समाज के संबंधों को मजबूत करने का संदेश भी छिपा है। यह दिन विवाहित महिलाओं के जीवन में एक विशेष स्थान रखता है,

क्योंकि यह उन्हें उनके वैवाहिक जीवन में जिम्मेदारी, प्रेम और समर्पण का एहसास कराता है।

आपका दिन शुभ हो

Thank you

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